स्वर्ण नगरी (swarna nagri | Purani kahaniyan):
तिब्बत की पहाड़ियों के समीप एक बहुत छोटा सा गाँव था। वहाँ के लोगों का जीवन समस्याओं से भरा था। फिर भी गाँव के लोग ख़ुशी ख़ुशी अपने छोटे मोटे काम में लगे रहते थे। गाँव वालों का बाहरी दुनिया से कोई ख़ास संपर्क नहीं था। इसी वजह से इस गाँव को नज़रअंदाज़ किया जाता था। कोई भी सरकारी योजना इस गाँव तक नहीं पहुँच पाती थी। दिनोदिन गाँव की हालत बदतर होती जा रही थी। गाँव के सभी लोग पुरानी प्रथाओं के अनुसार ही गौतम बुद्ध जयंती मनाया करते थे, और इस दिन गाँव के ज़्यादातर लोग बौद्ध भिक्षुओं की तरह पोशाक पहनकर ध्यान किया करते थे।
हर साल की तरह इस बार भी गाँव में गौतम बुद्ध जयंती मनाई जा रही थी। गाँव के सभी लोग उत्साहित होकर त्योहार का लुत्फ़ उठा रहे थे। तभी अचानक ज़ोरदार बारिश होने लगती है, और दो तीन घंटों की बारिश में गाँव संकट की स्थिति में घिर जाता है। गाँव के चारों तरफ़ से पानी की बड़ी बड़ी लहर आने लगती है। गाँव के सभी लोग अपने बच्चों और जानवरों को लेकर पहाड़ी के शीर्ष पर पहुँच जाते हैं। ऊपर पहुँचने से सभी अपनी जान तो बचा लेते हैं। लेकिन उनका गाँव बाढ़ में तबाह हो जाता है।
गाँव वालों को अपने घरों से ज़्यादा इस बात की चिंता होती है कि, इस बार वह बुद्ध जयंती नहीं मना सके। पहाड़ी के ऊपर बैठे बैठे शाम हो जाती है, और सभी गाँव वाले दुखी मन से पहाड़ी के ऊपर बैठे होते हैं। तभी उन में से एक बच्चे की नज़र, गाँव में बैठे हुए एक बौद्ध भिक्षु पर पड़ती है। उनके चारों तरफ़ पानी की तेज धाराएँ गुज़र रही होती है। लेकिन फिर भी, वह अपने ध्यान में मग्न होते हैं।
जैसे ही बच्चा यह बात गाँव वालों को बताता है। सभी लोग उनकी तरफ़ देखकर हाथ जोड़ लेते हैं, और उन्हें लगता है कि यह ज़रूर कोई अच्छा इंसान है जिसने, उनके गाँव की परंपरा को टूटने से बचा लिया और इस वर्ष भी सुबह से शाम तक ध्यान लगाने की प्रथा बनी हुई है। गाँव के चारों तरफ़ पानी होने की वजह से किसी की हिम्मत उस भिक्षु तक आने की नहीं होती। सभी पहाड़ी के ऊपर से जिज्ञासु भरी नज़रों से उन्हें देखते रहते हैं। जैसे जैसे रात होती जाती है, गाँव में पानी का स्तर और भी बढ़ता जाता है। लेकिन जिस स्थान पर बौद्ध भिक्षु बैठा होता है। उसके चारों तरफ़ प्रकाश की अद्भुत रोशनी दिखाई देती है। जिससे सभी गाँव वाले चकाचौंध हो जाते हैं। अब उन्हें लगने लगता है कि, हो ना हो यह ज़रूर कोई पुण्य आत्मा है। इस गाँव वाले सारी रात यह नज़ारा देखते रहते हैं, और देखते ही देखते उन सभी की नींद लग जाती है। जैसे ही वह सुबह उठते हैं, तो उनका गाँव स्वर्ण नगरी में बदल चुका होता है।
गाँव के सभी लोग सोने का गाँव देखकर सन्न रह जाते हैं। उन्हें यक़ीन नहीं होता कि, जो गाँव बाढ़ की तबाही में पूरी तरह नष्ट हो चुका था। वह इतना ख़ूबसूरत कैसे बन सकता है। सभी ख़ुशी ख़ुशी दौड़ते हुए पहाड़ से नीचे उतरते हैं, और पागलों की तरह, हर घर के अंदर जाकर देखते हैं। बड़ी बड़ी सोने की दीवारें, सोने की छत, सोने के दरवाजे और यहाँ तक कि उस गाँव की सड़कें भी सोने में बदल चुकी होती है। तभी उनकी नज़र उस स्थान पर पड़ती है, जहाँ वह बौद्ध भिक्षु बैठे थे। गाँव के लोग देखते हैं कि वह भिक्षु भी सोने की मूर्ति में बदल चुके थे। सभी उस मूर्ति के सामने सर झुकाकर अभिवादन करते हैं, और उन्हें धन्यवाद देते हैं।