सांप की कुंडली (snake story):
ये सांप की कहानी ( snake story ) सांप और सपेरे के रहस्यमयी संबंधों पर आधारित है | एक गाँव में एक सपेरा रहता था | उसके पास अलग अलग तरीक़े के कई साँप थे, जिन्हें वह अपने साथ बाहर ले जाकर खेल दिखाता था और इसी से उसका जीवन यापन होता था | एक बार की बात है | सपेरा शाम को अपने काम से कहीं बाहर जाता है और जब वह कुछ घंटों के बाद वापस आता है, तो उसके सारे सांप, घर से ग़ायब होते हैं | वह चारों तरफ़ नज़र घुमाता है और उसे एक व्यक्ति का जूता पड़ा हुआ दिखाई देता है और वह समझ जाता है, ज़रूर यहाँ कोई आया था, जो मेरे सांप ले गया | लेकिन सांप उसके लिए केवल जीव जन्तु नहीं थे, बल्कि वह तो उन्हीं पर आधारित था और उसकी रोज़ी रोटी साँपों से ही चलती थी | सपेरा अपने पड़ोसियों से जाकर पूछता है, लेकिन किसी भी पड़ोसी को कुछ पता नहीं, कि कौन सपेरे के घर में आया और उसके यहाँ चोरी कर सांप ले गया | सपेरा नया काम भी नहीं जानता था | अब उसे तो साँपों से प्यार था, इसलिए उसका सारा जीवन सांपों के आस पास से गुज़रता था | सपेरे ने दुख की वजह से खाना तक नहीं खाया और सारी रात दुखी होकर रोता रहा | उसकी तो दुनिया ही उजड़ चुकी थी | लेकिन वह सोचने लगा, मुझे अपना जीवन चलाने के लिए कोई न कोई काम तो करना ही होगा | क्यों न, मैं जंगल से लकड़ी लाने वाला काम कर लूँ, वही मेरे लिए उत्तम रहेगा और वह जल्द ही इसे सुबह उठकर जंगल के लिए निकल जाता है | जंगल पहुँचते ही, वह नदी के किनारे एक सूखे गिरे हुए पेड़ की लकड़ियां काटने लगता है | कुछ घंटों की मेहनत के बाद उसने बहुत सी लकड़ियाँ इकट्ठी कर ली और सभी को एक साथ बाँध कर वापस अपने घर के लिए निकलने लगा | तभी उसकी नज़र एक बहुत विशाल, सांप पर पड़ी | सांप एक पत्थर के बीच में कुण्डली मारे बैठा था | सपेरे को सांप की कुंडली कुछ अलग सा एहसास करवा रही थी |
सपेरे को सांप की कुंडली कुछ अलग सा एहसास करवा रही थी | उसे डर भी लग रहा था, क्योंकि ऐसा साँप उसने आज तक नहीं देखा था | यहाँ साँप सुनहरा दिखाई दे रहा था और इसकी आँखों में एक सम्मोहन छुपा हुआ था | यदि इसे कोई देख लें तो देखता ही रहे, ऐसी अद्भुत काया से भरा हुआ, विशाल साँप, जिसनें सपेरे का मन मोह लिया था | सपेरा साँप पकड़ने में माहिर है इसलिए वह अपना सम्मोहन हटाते हुए सांप की तरफ़ धीरे धीरे बढ़ता है और उसके पीछे से जाकर, सर से पकड़ लेता है | सपेरे की पकड़ते ही साँप एक दम शांत हो जाता है | सपेरा लकड़ियों को फेंक, साँप को लेकर जंगल से वापस आ जाता है | सपेरा बहुत ख़ुश था, क्योंकि उसे जीने का सहारा मिल चुका था | लेकिन उसे क्या पता, कि यह साँप तो अलग ही था और कुछ दिनों में सपेरे को भी, यह महसूस होने लगा | एक दिन सपेरा अपने घर की मरम्मत करने के लिए मिट्टी खोदने, अपने घर के आंगन आता है | लेकिन उसका सांप कुण्डली मारे आंगन में बैठा होता है | उसे ताज्जुब होता है, क्योंकि साँप को तो इस वक़्त अंदर होना चाहिए था | वह बाहर कैसे आया और वह साँप को पकड़कर दोबारा अपने पिटारे में बंद कर देता है और वापस आकर उसी जगह मिट्टी खोदने लगता है, जहाँ साँप कुंडली मारकर बैठा था और थोड़ी सी ही मिट्टी खोदने के बाद, उसे कुछ सोने के सिक्के मिलते हैं |
उसे देखते ही वह उछल पड़ता है | इतना सारा धन, उसने आज तक नहीं देखा था | वह सोने के सिक्के लेकर, अपने घर के अंदर चला जाता है और सोचने लगता है | अगर एक जगह ये सिक्के मिले हैं, तो हो सकता है और भी जगह यह मिल सकते हैं और वह बाहर जाकर के पूरे आँगन की मिट्टी खोद डालता है | लेकिन वहाँ मिट्टी और कंकड़ के अलावा कुछ नहीं मिलता | सपेरा हिम्मत हार, अंदर चला जाता है और कुछ देर तक बैठे रहने के बाद, उसके दिमाग़ में विचार आता है | कहीं, ये सांप का तो चमत्कारी नहीं है, क्योंकि जिस जगह पर सोने की पोटली मिली, वह साँप वही कुंडली मारकर बैठा था और उसका दिमाग़ चलना शुरू हो जाता है | वह तुरंत सोचता है, जब जंगल में साँप मिला था, तो वहाँ भी कुंडली मार के ही बैठा था | हो सकता है, उसके नीचे भी कुछ धन मिल जाए और वह कुदाल लेकर, जंगल की ओर निकल जाता है और उसी चट्टान के पास पहुँचता है, जिसके ऊपर वह सुनहरा सांप बैठा था और उस पत्थर को हटाने के लिए ज़ोर लगाने लगता है | लेकिन वह पत्थर हटाना उसके बस की बात नहीं थी | वह बहुत बड़ी चट्टान थी, लेकिन उसके मन में लालच का बीज आ चुका था | उसे तो, अब किसी भी हालत में धन चाहिए ही था | उसने वही जंगल में ही, कुछ वनवासी लोगों की मदद से, वह पत्थर उस जगह से हटा दिया और उन लोगों के सामने वहाँ खोदने में लगा और कुछ ही समय में वहाँ से बहुत बड़ा पीतल का संदूक निकला | संदूक देखते ही, सपेरे के चेहरे में ख़ुशी का ठिकाना ना था | लेकिन वह भूल गया था, कि उसने वनवासीयों के सामने ही यह खोजा था और सपेरा जैसे ही संदूक खोलता है, उसमें हीरे जवाहरात, अशर्फ़ियाँ भरी होती है | तभी अचानक वनवासीयों का समूह सपेरे को पकड़ लेता है |
वनवासी जंगल को अपना देवस्थान मानते थे और वहाँ से कोई भी चीज़, किसी को ले जाने नहीं दे सकते थे | सपेरा ग़ुस्से से उनका विरोध करने लगता है | लेकिन वनवासी उसकी कोई बात नहीं सुनते और उसे अपने साथ ले जाकर अपने सरदार के सामने खड़ा कर देते हैं और यहाँ घटित हुई, सारी सारी बातों को बता देते हैं | वनवासियों का सरदार बहुत ज़ालिम होता है और जंगल में किसी भी घुसपैठ करने वाले को मौत की सज़ा देता है और सारी बात सुनते ही सरदार सपेरे को भी, पहाड़ी के ऊपर से घने जंगलों में, फेंकने का आदेश देता है और सरदार का आदेश पाते ही, वनवासी उसे उठाकर पहाड़ी से नीचे फेंक देते हैं और सपेरे की लालच से उसकी रहस्यमयी कहानी का अंत हो जाता है |
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